कैसी हो राष्ट्रीय शिक्षा नीति? What to do for Education Policy
न केवल भारत बल्कि सम्पूर्ण विश्व में शिक्षा जीव को मानव बनाने की प्रक्रिया है। शिक्षा को व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करते हुए वर्तमान तथा भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार रहने का प्रशिक्षण जो व्यवहारिक ज्ञान, आधुनिकतम तकनीकी दक्षता, भाषा, साहित्य, इतिहास सहित हर आवश्यक विषय की जानकारी प्रदान करने वाला सशक्त माध्यम माना जाता है। लेकिन जब हम भारतीय दर्शन की चर्चा करते हैं तो प्रकृति और अपने परिवेश के प्रति संवेदनशील उचित आचरण को शिक्षा की कसौटी माना गया है। हमारे लिए शिक्षा कोरा अक्षर ज्ञान नहीं बल्कि विद्या का वह रूप है जो सर्वप्रथम सुसंस्कृत बनाती है।
इधर 29 जून 2016 को मानव संसाधन मंत्रालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रारूप जारी किया। उस प्रारूप को केवल अंग्रेज़ी में सार्वजनिक किया जाना इसे बनाने तथा जारी करने वाले अफसरशाहों और तथाकथित शिक्षाविदों की मंशा का संकेत है। वर्तमान में राष्ट्रवादी सरकार में है अतः शिक्षा नीति को ‘मैकाले प्रभाव’ से मुक्त करने की जिम्मेवारी निभाकर ही वे अपनी विश्वसनीयता को बरकरार रख सकते हैं। यदि वे इस मामले में अफसरशाहों और तथाकथित शिक्षाविदों के चक्राव्यूह में केवल ‘हां में हां’ मिलाने को मजबूर हो जाते हैं तो यह इस देश का दुर्भाग्य होगा। इस प्रारूप पर 31 जुलाई तक अपने सुझाव और प्रतिक्रिया देने को कहा गया था। अब यह समय सीमा 15 अगस्त तक बढ़ा दी गई है। अपने सुझाव/आपत्ति भेजने के लिए ई-मेल- nep.edu@gov.in
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के संबंध में कुछ सुझाव-
1- शिक्षा का माध्यम हिंदी सहित भारतीय भाषाएं ही होनी चाहिए। विदेशी भाषा को अत्याधिक महत्व देना आत्मघाती है। त्रिभाषा फार्मूले में स्थानीय भाषा के बाद हिन्दी एवं संस्कृत का स्थान हो तथा सभी विदेशी भाषाओं को एक श्रेणी में रखते हुए स्नातक स्तर तक उनमें से केवल एक भाषा लेने की छूट होनी चाहिए। यदि कोई अतिरिक्त भाषाएं सीखना चाहता है तो वह व्यक्तिगत स्तर पर इसकी व्यवस्था कर सकता है।
2- स्कूल स्तर तक निजी अथवा राजकीय विद्यालयों में पाठ्यक्रम समान होना चाहिए। जिससे कमाई के लिए अनावश्यक पुस्तकों का वजन बढ़ाने की प्रवृत्ति पर अकुंश लगाया जा सकें। निजी स्कूलों द्वारा पुस्तकें, वर्दी, स्टेशनरी बेचना दंडनीय अपराध घोषित होना चाहिए।
3- शिक्षा में देशप्रेम, संस्कृति और नैतिक मूल्यों का स्थान सुनिश्चित किया जाना चाहिए। ताकि जापान की तरह हर भारतीय बच्चे में ‘सबसे पहले देश’ के संस्कार प्रबल हों। लम्बी छुट्टियों में सांस्कृतिक आदान- प्रदान के लिए उत्तर के छात्रों को कम से कम एक पखवाड़े का क्रमानुसार पूर्व, पश्चिम, दक्षिण का प्रवास करना चाहिए। शेष क्षेत्रों में भी इसी प्रकार के प्रयास होने चाहिए। इस अध्ययन प्रवास के दौरान प्राप्त अनुभवों को लिखने तथा श्रेष्ठ गुणों को अपने जीवन व्यवहार में उतारने के लिए प्रेरित किया जाये। अंतिम परिणाम में इस मूल्यांकन भी होना चाहिए। संस्कृत तथा नैतिक मूल्यों का लगातार अध्ययन उन्हें पथभ्रष्ट होने से बचाने में मदद करेगा।
4- प्र्राथमिक स्तर तक पुस्तकों के साथ- साथ प्रकृति तथा व्यवहारिकता के माध्यम से भी बच्चे को मानसिक विकास हो, ऐसा प्रयास होना चाहिए। यातायात अनुशासन, आपदा प्रबंधन, तल संरक्षण जैसे विषयों पर बच्चों को जागरूक करने के किताबी नहीं बल्कि प्रयोगात्मक उपाय एवं प्रशिक्षण होने चाहिए।
5- स्नातक स्तर तक साहित्य का पठन- पाठन अनिवार्य हो। एकता को बढ़ावा देने के लिए साहित्य का भारतीय भाषाओं में अनुवाद कर उन्हें प्रकाशित तथ पाठ्यक्रम में शामिल किया जाये। प्राथमिक स्तर पर बच्चों को देश-प्रेम के गीतों व कविताओं के गायन की प्रतियोगिाएं हो। स्वतंत्रता दिवस. गणतंत्र दिवस आदि राष्ट्रीय त्यौहारों पर एकता को बढ़ावा देने वाले गीतों , कविताओं के गायन, कहानियों और नाटकों के मंचन को बढ़ावा दिया जाए। ऐसा करते हुए हिन्दी तथा भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता दी जाये। अंग्रेजी माध्यम वाले निजी स्कूलों को भी इसके पालन के स्थाई निर्देंश होने चाहिए। उल्लंघन/कोताही को दंडनीय बनाया जाये।
6- शिक्षा नीति बनाने और उसे लागू करने से पूर्व यह सुनिश्चित किया जाये कि केवल राजकीय स्कूलों में अध्ययन करने वाले ही राजकीय नौकरियों के पात्र होंगे। जो सामर्थ्यशाली हैं और ज्ञान प्राप्ति के बेहतर संसाधनों से लैस हैं उनसे सामान्यजन की प्रतियोगिता प्राकृतिक न्याय के विरूद्ध है।
7- उच्च स्तर पर वैज्ञानिक ,तकनीकी विषयों की शिक्षा का माध्यम भी भारतीय भाषाएं होनी चाहिए। अलग-अलग धाराओं में जाने के लिए पाठ्यक्रम को कुछ इस तरह से निर्धारित किया जाये कि अनावश्यक बोझ न बढ़े। जैसे वर्तमान में छात्र वाणिज्य का हो या विज्ञान का अथवा कला का गणित समान है। स्पष्ट है कि पाठ्यक्रम बनाने वालों ने कोमर्स और साइंस के अंतर और उनकी भावी आवश्यकताओं को समझने की जहमत नहीं उठाई।
8- शिक्षा का माध्यम किसी भाषा में होना तथा उस भाषा को एक विषय के रूप पढ़ाने के अंतर को रेखांकित किया जाना आवश्यक है। विषय के रूप में पढ़ाते हुए भी उस भाषा के इतिहास, भूगोल संग उसके साहित्य का अध्ययन होना चाहिए न कि तकनीकी शब्दावली को अन्य विषयों में जबरदस्ती घुसेड़ने का जरिया।
9- शिक्षा को केवल किताबी ज्ञान तक सीमित न करते हुए उसे तकनीकी एवं व्यवहारिक ज्ञान का ऐसा माध्यम बनाया जाये जो स्कूली स्तर पर (बारहवीं कक्षा तक) ही छात्र को केवल बाबू बनने की प्रवृत्ति से मुक्त करते हुए उसे किसी न किसी तकनीकी में प्रवीण बनाकर उसे रोजगार प्रदान कर सके।
10- सभी स्कूलों में सामूहिक व्यायाम एवं योग को अनिवार्य बनाते हुए खेलो तथा एनसीसी के लिए प्रेरितकरने का वातावरण होना चाहिए। किसी की स्कूल को मान्यता प्रदान करने से पूर्व वहां खेल एवं चिकित्सा की पर्याप्त सुविधा का होना सुनिश्चित किया जाये।
11- सभी स्कूलों में कम्प्यूटर सहित आधुनिक संसाधन हो। विज्ञान की प्रयोगशालाएं वर्तमान की तरह सजावटी न हो। वेदों के श्रेष्ठ ज्ञान को भी आधुनिक संसाधनों के माध्यम से और सरल सहज बनाकर सबके लिए उपलब्ध कराया जाये।
12- उच्च शिक्षा में प्रवेश की कसौटी तय की जाये क्योंकि वर्तमान में अनेक अपात्र लोग भी कालेजों में प्रवेश पाकर वहां समस्याएं उत्पन्न करते हैं। जिनकी स्कूली शिक्षा का स्तर ही औसत से कम रहा हो उन्हें कालेजो की बजाय तकनीकी संस्थानों की ओर मोड़ने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
13- सरकारें द्वारा पिछले कुछ दशकों से लगातार सभी से शिक्षा के लिए ‘सेस’ नामक कर वसूल रही है। यदि आवश्यक हो तो अन्य खर्चों में कटौती करके भी सभी के लिए शिक्षा को अनिवार्य एवं निःशुल्क बनाया जाना चाहिए। निजी स्कूलों को भी कम से कम आधे छात्र निःशुल्क रखने का निर्देश हो। उन्हें पुस्तक, स्टेशनरी तथा अन्य खर्चो का भुगतान भी स्कल प्रबंधन द्वारा होना चाहिए। सभी को पास करने की नीति का भी परित्याग होना चाहिए क्योंकि शिक्षा का उद्देश्य मात्र प्रमाणपत्र प्रदान करना नहीं, अपितु सदगुण प्रदान करना है।
प्रेषक - विनोद बब्बर 9868211911
कैसी हो राष्ट्रीय शिक्षा नीति? What to do for Education Policy
Reviewed by rashtra kinkar
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