पुतले फूंकने वालो, एक नजर इधर भी डालो A diffrent scene -- Ravan was not so bad



लोकप्रिय धारावाहिक रामायण के रावण अरविंद त्रिवेदी
दिल्ली में तितारपुर (टैगोर गार्डन मेट्रो स्टेशन के पास) रावण मंडी के रूप मेंजाना जाता है। हमारे बचपन के दिनों में वहां एक बाबा रहते थे जिन्हे रावण वाले बाबा कहा जाता था । वे तब दो-चार पुतले ही बनाते थे। बाबा तो अब नहीं रहे लेकिन अब यहाँ महीनों पहले से ही हजारो रावण बनने लगते है। दशहरे के आसपास तो यह रावण मंडी में परिवर्तित हो जाता है। एक कार्यक्रम में जाते हुए ट्रैफिक पुलिस के अनेक अधिकारियों उपस्थिति के बावजूद वहां जाम लगा देखा तो गाडी से उतर कर जानकारी लेनी चाही। क्या देखता हूं कि हर पटरी पर रावण ही रावण। मोल भाव करते रामलीला वाले। जहाँ चाहो ले चलने को ट्रक टेम्पो वाले भी तैयार। पूरा वातावरण रावणमय। रास्ता खुलते ही आगे बढ़ा लेकिन मन ही मन सोच रहा था कि जो कुबेर का भाई, सोने की लंका का स्वामी रावण दुनिया की किसी भी वस्तु को एक ही इशारे पर खरीद सकता था- अपनी एक गलती के कारण आज फुटपाथ पर बिक रहा था। आज के उन रावणो का क्या होगा जो रोज अपनी प्रभुता और शक्ति के सामने किसी को कुछ समझने को तैयार ही नहीं। ऊपर से भले लेकिन भीतर से रावण से भी बढ़कर इन तथाकथित ‘भद्र पुरुषों’ का क्या होना चाहिए?
विचारक्रम आगे बढ़ता है तो सोचता हूं कि बेशक हम रावण को राक्षस राज घोषित कर बुराई के प्रतीक के रूप में उसके पुतले जलाते हैं जबकि हमारी वृत्ति के समक्ष वह रावण तो बहुत छोटा था। हम अपने भीतर को छिपा कर खुश होते हैं। यदि आत केे रावणों से उस की तुलना की जाए तो रावण वास्तव में देवता ही था। उसने सीता का हरण करने का पाप जरूर किया लेकिन उनकी इच्छा के विपरीत उन्हें हाथ तक नहीं लगाया। जबकि  आज हमारे चारो ओर कया हो रहा है। हमारी बहन-बेटियां सुरक्षित नहीं है। उनसे छेड़छाड़, अपहरण, बलातकार ही नहीं बात न मानने पर एसिड़ हमले भी होते है। यदि रावण वह एक गलती न करता तो शायद आज इतिहास ही अलग होता और रावण घृणा नहीं  बल्कि श्रद्धा और आस्था का पात्र होता।
वह रावण तो शंकर भगवान का भक्त, तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान था। महर्षि वाल्मीकि उसके गुणों को निष्पक्षता के साथ स्वीकार करते हुये उसे चारों वेदों का विश्वविख्यात ज्ञाता और महान विद्वान बताते हैं। बाल्मिकी रामायण में हनुमान के रावण के दरबार में प्रवेश के समय लिखा श्लोक हैं- 
अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युतिः। अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता।। अर्थात् रूप, सौन्दर्य, धैर्य, कान्ति तथा सर्वलक्षणयुक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता।
इतना ही नहीं भारतीय परम्परा में जन्मे जैन मत के ग्रंथों के अनुसार राम और रावण दोनों जैन धर्म में पूर्ण आस्था रखते थे। रामायण की घटना 20वें तीर्थंकर के समय की हैं। उनके अनुसार रावण राक्षस नहीं बल्कि विद्याधर था जिसके कारण उसके पास जादुई शक्तियाँ थी। इन ग्रंथों के अनुसार रावण का वध राम ने नहीं बल्कि लक्ष्मण ने किया था।
इसी प्रकार दक्षिण भरत की सर्वाधिक लोकप्रिय कम्ब-रामायण के अनुसार  रावण मरणासन्न भूमि पर पड़ा है। पूरा शरीर राम के बाणों से छलनी हो गया। राम एक बाण को प्रचंचा पर चढ़ाते हुए मन ही मन उसे आदेश देते हैं कि तुम रावण के शरीर के अंदर पहुंचकर देखो कि क्या रावण के ह्रदय में कहीं सीता है? वह बाण रावण के शरीर में प्रत्येक जगह खोजता है और अंत में राम के पैरों में झुकते हुए बताता है कि बेशक रावण सीता का हरण करके ले गया था लेकिन उसके ह्रदय में कहीं भी सीता का नामो निशान तक नहीं है। 
रावण ने अपनी बहन के अपमान का प्रतिकार करने के लिए सीता का अपहरण किया था। ऐसा करते हुए उसके हृदय में काम- वासना न थी।  रावण के पुतले फूंकते हुए आखिर हम इससे क्यों नहीं शिक्षा ग्र्रहण करते हैं? अगर करते तो महिला अपराध क्या किसी दूसरे ग्रह के लोग आकर करते हैं? 
वैसे रावण की विद्वता की चर्चा सर्वत्र होती है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में कहा है के रावण अपनी पत्नी मंदौदरी से कहते हैं-
नारि सुभाऊ सत्य सब कहहीं। अवगुन आठ सदा उर रहहीं। 
साहस अनृत चपलता माया। भय अबिबेक असौच अदाया।
इस बात को सभी जानते, मानते है कि भगवान श्रीराम ने अपने अनुज लक्ष्मण को मरणासन्न रावण के पास भेजते हुए कहा था कि इस संसार से नीति, राजनीति और शक्ति का महान् पंडित विदा ले रहा है, तुम उसके पास जाओ और उससे जीवन की कुछ ऐसी शिक्षा ले लो जो और कोई नहीं दे सकता। 
यह भी सर्वज्ञात है कि जब राम की बात मानकर लक्ष्मण रावण के सिर के नजदीक जाकर खड़े हो गए तो रावण ने कुछ नहीं कहा। इसपर लक्ष्मण राम के पास लौट आए। तब श्रीराम ने लक्षमण को समझाते हुए कहा था, ‘यदि किसी से ज्ञान प्राप्त करना हो तो उसके चरणों के पास खड़े होना चाहिए न कि सिर की ओर।’ यह सुन लक्ष्मण इस बार रावण के चरणो की ओर खड़े हुए। तब महापंडित रावण ने लक्ष्मण को बताया था- 
द शुभ कार्य जितनी जल्दी हो कर डालना और अशुभ को जितना टाल सकते हो टाल देना चाहिए यानी शुभस्य शीघ्रम्। मैंने श्रीराम की शरण में आने में देरी कर दी, इसी कारण मेरी यह हालत हुई।
द अपने प्रतिद्वंद्वी, अपने शत्रु को कभी छोटा न समझो। मैंनेें बंदर भालू को कमतर आंका परिणाम स्वरूप मेरी पूरी सेना को नष्ट कर दिया। मैंने जब ब्रह्माजी से अमरता का वरदान मांगते हुए कहा था- मनुष्य और वानर के अतिरिक्त कोई मेरा वध न कर सके क्योंकि मैं मनुष्य और वानर को तुच्छ समझता था। यह मेरी महान गलती थी।
द अपने जीवन का कोई महत्वपूर्ण राज भूलकर भी  किसी को नहीं बताना चाहिए। मैं चूक गया। विभीषण मेरी मृत्यु का राज जानता था। उसे अपना राज बताना मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती थी।
रावण केवल वीर योद्धा ही नहीं बल्कि अनेक गुणो से परिपूर्ण था। उसने अर्क प्रकाश नाम से एक पुस्तक की रचना की थी जिसमें 100 से ज्यादा बीमारियों के निवारण, स्त्री रोगविज्ञान और बाल चिकित्सा सहित अहम ज्ञान था। 
रावण एक महान योद्धा तो था ही, सौंदर्य बोध में भी उसके भीतर कूट-कूट कर भरा था। रावण ने कई कविताओं और श्लोकों की रचनाएं की थीं। शिवतांडव इन्हीं रचनाओं में से एक है।
रावण और विभीषण का अंतर- 
विभीषण धर्मात्मा, तपस्वी और श्रेष्ठ आचार विचार का पालन करने वाले थे। उसने सीता हरण का विरोध करते हुए कहा था, ’राजन ये आचरण यश, धन और कुल का नाश करने वाले हैं। इनके द्वारा जो प्राणियों को पीड़ा दी जाती है, उससे बड़ा पाप होता है, इस बात को जानते हुए भी आप सदाचार का उल्लंघन करके स्वेच्छाचार में प्रवृत हुए हैं।’  विभीषण ने ही हनुमान का वध न करने का परामर्श देते हुए दूत के वध का निषेध बताया था। लेकिन लोग आश्चर्य करते है कि आज तक किसी ने भी अपने पुत्र का नाम विभीषण नहीं रखा तो जरूर इसका कोई कारण होना चाहिए। शायद ये लोग नहीं जानते कि भारतीय मनीषा के अनुसार व्यक्ति से बड़ा परिवार, परिवार से बड़ा समाज और राष्ट्र है। राम भक्त होना अच्छी बात है लेकिन राष्ट्रभक्त होना रामभक्ति से बढ़कर है। राम राज दिला सकते हैं लेकिन पहचान तो राष्ट्र से ही मिलती है। विभीषण निसंदेह धर्मात्मा थ लेकिन राष्ट्रधर्म में उसकी निष्ठा नहीं जिसका परिणाम सब  पाकर भी विभीषण ‘घर का भेदी, लंका ढाये’ ही रहा। उसे रावण जितना भी यश प्राप्त नहीं हुआ जो सर्वथा उचित ही है। 
 --विनोद बब्बर 9868211911  (03 अक्टूबर 2016 )



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