आतंकवाद बनाम मच्छर ---व्यंग्य--



काफी दिन गायब रहने के बाद अचानक घसीटाराम जी की आवाज सुनाई दी तो मैं उनकी आगवानी करने के लिए बाहर आ गया। बेशक उनकी वाणी में आग है लेकिन यकीन मानिए मेरी ओर से उनकी आगवानी बिल्कुल कूल यानि परम्परागत स्टाइल में ही हुई। लेकिन वे आते ही अपने अंदाज में चढ़ बैठे, ‘अमा यार! आज के लोंडे ता़े हमे कुछ समझे ही कहां हैं। अब देखो न, आज एक लोंडे से पूछा लिया, ‘मियां, मच्छर और आतंक में क्या समानता है?’ तो उसने मुझे  ऐसा घूरा मानो मैं तुम्हारा घसीटा चचा नहीं, उसका हाफिज ताऊ हूं।’ 
‘बात तो सही ही है कहां पिद्दी सा मच्छर और कहां खतरनाक आतंकवादी।’ हमने अपनी बात घुसेड़ने के लिए कहा ही थी कि घसीटाराम जी ने झपटते हुए पकड़ लिया, ‘मुझे मालूम था तुम्हारी अक्लदानी भी चिकनगुनिया की चपेट में आकर जरूर कुछ जकड़ी होगी। इसीलिए आज घर से निकला हूं। इत्ती सी बात भी तुम्हारे पल्ले नहीं पड़ती तो इस देश का रखवाला न तो कोई अल्लाह और न ही भगवान हो सकता है।’
‘अरे भाई बदलते दौर में सोच को भी थोड़ा इधर-उधर घुमाना सीखो। ये तेरा मच्छर होवे तो सारा साल है पर कदे-कदे ही क्यों उछाल मारे है। रात में थोड़ी बहुत गीत गुनगुनाता रहे और मौज करे तो किसी को एतराज न होगा। लेकिन जब डेंगू चिकनगुनिया का आतंक फैलायेगा तो सर्जिकल आपरेशन जरूरी हो जाता है। छोटी-बड़ी हर सरकार दे दनादन फागिंग , दवाई का छिड़काव और न जाने क्या- क्या करने लगती है और जनता फिर भी उसे उसी तरह से कोसती है जैसे आतंकवादी हमले के बाद होता है। उधर सरकारे आतंक रोकने के लिए सीमा सील करती है इधर हम भी मच्छर से बचने के लिए मच्छरदानी लगा लेते है। खिड़कियों पर जाली टांग लेते हैं। लेकिन कभी बात बनी है क्या?
उधर आतंकवाद के कैम्प है तो इधर मच्छर ब्रीडिंग कैम्प यानि गंदे पानी के गड्डे कम है क्या? इन्हें रोकने के कुछ उपाय किये तो उन्होंने भी अपना पैंतरा बदल लिया। अब वे गंदे पानी को छोड़ साफ पानी में पलने लगे। पहले वे मलेरिया वाले थे अब आतंकवादियों की तरह अति आधुनिक हथियारों से लैस हो डेंगू और चिकनगुनिया का आतंक फैलाते हैं। उधर आतंक सीमा पार करता है तो सरकारे जागती है तो इधर भी जब तक अस्पतालों में बैड खाली न रहे और दो-चार शहीद न हो जाये। तब तक सरकारंे लम्बी तान कर ही सोती हैं। बात आतंक की हो या मच्छर की, जब ज्यादा बढ़ जाती है तो विपक्ष सरकार की नाक में दम करता है। लेकिन समझदार सरकार वहीं होती है जो याद दिलाये तुम्हारे शासन काल में आतंक से उतने मरे थे। हमने तो अभी मात्र इतनों को ही प्राण त्यागने की अनुमति दी है। लोकतंत्र के सच्चे योद्धा आतंकवाद या मच्छर से लड़ने में अपना समय बर्बाद करने की बजाय एक दूसरे को नकारा साबित करने में पूरी शक्ति लगाते हैं इसीलिए तो आज तक न मच्छर खत्म हुए हैं और न ही आतंकवादी।
आंखे खेल कर देखो,, इन दोनो को बचाने वाले भी बहुत है। ‘दवाई छिड़कने या फोगिंग से पर्यावरण बिगड़ता है’  की रट लगाने वालो को न जाने तब क्यों सांप सूघ जाता है जब हम पूछते हैं कि क्या मच्छर की मौजूदगी से पर्यावरण संतुलन कायम रहता है? यदि हां, तो  अपने घर में मच्छर  के लिए क्या अनुकूलन किया है? आतंकवाद पर सख्ती भी बहुतों को माफिक नहीं आती। मानवाधिकार की चिंता करने वाले नामुराद आतंक के शिकार निर्दोषों के मानवाधिकारों पर मच्छरों की तरह न  जाने कहां जा दुबकते हैं।
बाहर के मच्छरो से तुम्हारे अपने घर के किसी कोने में छुपे मच्छर ज्यादा मारक है। इसपार के अंधेरो के बिना उस पार वाले यहां भी सफल नहीं हो सकते। तुम मारते रहना मच्छर खुले मैदान में। लेकिन कभी अपने पर्दे हटाकर मत देखना। ज्यादा कहूंगा तो बोलोगे कि तुम्हारी जबान भी लम्बी हो गई है। आखिरी बात भी सुन लो- आतंक के पीछे बड़ी ताकते हैं तो डेंगू चिकनगुनिया के पीछे भी बड़ी दवा कम्पनियां हैं। उनके हित हैं। एक की जेबें आतंक के नाम पर भरती है। अगर वो खत्म हो गया तो उनकी हथियारों की दुकान का क्या होगा। सच पूछो तो आतंकवादी उन्हीं की अवैध संतान है। अरे भाई सफाई अभियान ढ़ंग से चलाओं। कहीं गंदगी, कूड़ा, गंदा पानी न रहने दो तो कहां बचेगा आतंकी मच्छर। अगर बचेगा तो तुम्हारी अपनी चारपाई के नीचे ही बचेगा। आतंक मचेगा तो बीमार ही नहीं, मेरे जैसे स्वस्थ लोग भी बिना जरूरत महंगी दवा खरीदेगे। महंगे अस्पताल गुलजार होंगे। 
प्यारे कान खोलकर सुन लें! दोनो ही राजनीति को गरमाते हैं। दोनो ही वोट बैंक का नापतोल करते है। जिसे देखो वहीं मच्छर से मोदी तक का सीना नापना चाहता है। मैं अब भी कहता हूं- मच्छर और आतंक एक ही कुल गौत्र के है। दोनो ही घुसपैठिये है। दोनो हमारी ढील का लाभ उठाते है। एक हमारा बिछड़ा हुआ भाई है तो दूसरे की रगो में भी हमारा ही खून दौड़ता है। दोनो हमारी यह कमजोरी जानते है कि हम थोड़ा शोर मचाकर फिर सो जायेंगे। सच पूछो तो मच्छर और आतंक हमें जगाते हैं। जंग लगी मशीनरी को एक्टीवेट करते करवाते है। लेकिन तू इतनी देर से क्या कर रहा हैं? अरे मच्छर! अब तक न तेरी चाय आई ओर न ही  बिस्कुट। जरा जल्दी कर, मुझे आतंक की सर्जरी करने आगे भी जाना है।’’ इससे पहले घसीटाराम जी मच्छर के बाद मुझे आतंकी घोषित करते मैने चाय प्रस्तुत करने में ही अपनी भलाई समझी। आखिर मामला आतंक है। सावधानी जरूरी हैं। - प्रथम अक्टूबर, 2016
 विनोद बब्बर संपर्क-   09868211911 rashtrakinkar@gmail.com


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