दिया बनना साधना है
धीरेन्द्र संग (चित्र सहयोग जाने माने फोटो ग्राफर अनिल नागपाल ) |
आशा के अनुरूप युवा छात्रों ने जोरदार करतल ध्वनि की और शांतचित्त बैठे गये। देश की युवा शक्ति में मेरा विश्वास एक बार फिर सें मजबूत हुआ। हमारा युवा केवल तभी मनमानी करता है जब उसे भड़काया जाये या उसे मजबूर किया जाये। अगर सभी मर्यादा में रहे तो वे कभी भी शिकायत का मौका नहीं देते। और अगर हम ही बेराह चलेंगे तो उन्हें क्या सिखायेंगे। तो साहिब लेक्चर कुरु...!
‘मेरे युवा दोस्तों! सबसे पहले आप सभी को प्रकाशपर्व दिवाली, दीपावली की ढ़ेरांे शुभकामनाएं। दिवाली मनाने का सबका अपना-अपना अंदाज हो सकता है। मिठाई अलग हो सकती है। पूजा करने की ढ़ंग भिन्न हो सकता है। पटाखे चलें या नहीं चलेंगे इसपर मतभिन्नता हो सकती है लेकिन एक बात हर जगह समान है- वह है दिया जो हर जगह है। पर दिया है क्या? कहां से आया है? समय बदला फिर आज भी उसी परपरागत दिये की जरूरत क्या है? ऐसे अनेक प्रश्न आपके मन में आते होंगे।
दिये की कहानी कुछ आप जैसी है। कुम्हार ने कस्सी, फावड़े, गैंती मारकर अच्छी मिट्टी के कुछ ढ़ेलों को धरती मां से अलग किया। घर लाकर उस मिट्टी को खूब पीटा और फिर पानी डाला, पांवों से गूंधा। जब वह मुलायम हो गया तो उसे आकार देने की कोशिश की। तो क्या दिया बन गया? नहीं साहिब अभी नहीं। उसे तेज धूप में दिनभर सुखाया। रंग किया। लेकिन लगा कि यह अभी भी कच्चा है तो उसकी अग्नि परीक्षा लेने के लिए भट्ठी की तेज आंच में पकाया। तो अब दिया तैयार है? नहीं, अभी तो उसे बाजार तक पहुंचना है। बोरी में, टोकरी में वह बाजार पहुंचा। रास्ते से बाजार के तख्त पर पलटे जाने तक कुछ दिये टूटे, कुछ रूठे। अब शुरु हुई उनकी जांच, छटाई। ग्राहकों ने अपनी पंसद के दिये छांटे और शेष को किनारे लगा दिया। एक बिल्कुल नये परिवेश में जाकर उसे उजाला करना है। वहां उस सबसे पहले धोया गया। फिर करीने से सजाकर उसे रूई की बाती संग भरपूर स्नेह (घी, तेल) प्रदान किया गया। पूजन से पूर्व उन दियों को प्रकाशवान किया गया। जब तक स्नेह रहा, वे दिये प्रकाश बांटते रहे। बांटते रहे। कभी शिकायत नहीं की। पर हां, कुछ बहानेबाज लोग जरूर कहते रहे, ‘ये दिया क्या प्रकाश बांटेंगा इसके खुद के तले अंधेरा है।’ लोग कुछ भी कहे लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि किसी दिये ने कहा, ‘उसकी जीन्स विदेशी है, मेरी पेंट साधारण है। उसके जूते लाटों के है मेरे लखानी के है। उसकी घड़ी राडो की है मेरी टाइटन की है या है नहीं। इसलिए मैं पढ़ लिखकर अपने और अपने परिवार, समाज और देश के भविष्य को रोशन नहीं करूंगा।
मेरे युवा दोस्तो, मैंने आरंभ में ही कहा था, दिये की कहानी भी कुछ आप जैसी है। विद्यार्थी षटलक्षणम् में एक है- गृहत्यागी। होस्टल में। यानी मां से दूर। दुनिया को रोशनी बांटने वाला दिया बनने से पहले मिट्टी के ढ़ेले अपनी धरती माता से अलग हुए। दिये की सबसे बड़ी विशेषता है कि एक दिये से हजारो दियों को रोशन किया जा सकता है। एक होनहार बालक अपने आचरण से हजारों को आगे बढ़ने की प्रेरणा दे सकता है। दिये की कहानी सुनना और उसके प्रकाश का आनंद या लाभ लेना बहुत आसान है। पर
दिया बनना एक साधना है। आप सब भी दिया बनने की राह पर हो इसलिए अपना ध्यान अपने लक्ष्य पर लगाओं। किसी भी कष्ट, अभाव से मत घबराओं। सफलता आपकी प्रतीक्षा कर रही है। अब बताये कौन-कौन दिया बनकर अपना भविष्य उज्ज्वल करना चाहता है? (लगभग आधे छात्रों की आवाज गूंजी- मैं) ठीक है जो दिया बनने के लिए खुशी से तैयार है उन्हें मेरी शुभकामना और जो फिलहाल मौन हैं उन्हें मेरा श्राप कि वे भी दिया बने। - विनोद बब्बर 7982170421 (दीपावली 2017)
दिया बनना साधना है
Reviewed by rashtra kinkar
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