स्वाद के स्वागत की दुनिया Welcome in the world of Taste



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स्वाद के स्वागत की दुनिया

ममता की चांदी की थाली
आज सुबह पांच बजे पार्क से बाहर निकल ही रहा था कि एक पुराने परिचित से मुलाकात हुुई। बहुत दिनों बाद मिले थे इसलिए उनका, उनके परिजनों विशेष रूप से उनके पुत्र जो मेरा छात्र रह चुका है- का कुशलक्षेम जाना। कुछ क्षणों की इस मुलाकात में उन्होंने कहा-‘आओ किसी दिन चाय पर।’ मैंने भी सहमति में सिर हिला दिया और वे पार्क में तो मैं वापसी के लिए आगे बढ़ गया।
वापसी में हर सुबह सैर में साथी धीरज ने मुझसे पूछा, ‘किसी को अपने घर बुलाने के लिए चाय या खाना का ही निमंत्रण क्यों दिया जाता है?’ 
टालने के लिए मजाक में कुछ भी कहा जा सकता है। लेकिन सवाल गंभीर है। ऐसा पहली बार भी नहीं हुआ है। वास्तव में हम भारतीय किसी उत्सव, समारोह का मूल्यांकन वहां उपलब्ध व्यंजनों से करते हैं। जहां जितने अधिक व्यंजन, वह समारोह उतना ही भव्य। यानी जितनी बढ़िया दावत, कार्यक्रम उतना ही सफल। चर्चा के योग्य। याद रखने योग्य। अनुकरण योग्य।
हमारी बातचीत भी अक्सर खान-पान के इर्द-गिर्द केन्द्रित रहती है। दो महिलाएं फोन पर आत्मीय बात कर रही होगी तो यह चर्चा जरूर होगी कि उन्होंने आज क्या पकाया या क्या बनाने जा रही है। यह भी संभव है कि वे रेसपी पर भी चर्चा करें। किसी गृहिणी को तभी सुघड़ माना जा सकता है, अगर उसे अतिथि सत्कार यानि तरह-तरह के व्यंजन पकाना, परोसना आता हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह उच्च शिक्षित है। फैशन डिजाइनर, डाक्टर, इंजीनियर, प्रेफोसर, सीए, सीईओ, लेखिका, राजनेता है या कुछ और। अगर पाक कला विशारद नहीं तो कैसी प्रशंसा? कैसी योग्यता? गलत कहें या सही लेकिन सत्य यही है कि हमारे समाज में घर संभालने की योग्यता की प्रथम शर्त बढ़िया पकाने खिलाने में मास्टरी है।
हमारे पास हर समस्या का रामबाण इलाज है- उसे कुछ खिलाओं, पिलाओ। एक बच्चे रो रहा है। यहां जानने, समझने की हम जरूरत महसूस नहीं करते कि वह क्यों रो रहा है, हम हमेशा एक ही बात दोहराते हैं- ‘भूखा है, उसे दूध पिलाओं।’ बच्चा थोड़ा बड़ा हुआ तो हम घर से बाहर जाते हुए उससे पूछते हैं, ‘अच्छा बताओं, तुम्हारे लिए क्या लाये- चाकलेट या फ्रूट?’ और अगर हम याद नहीं रहा तो वह ही हमे याद दिला देगा, ‘पापा/ बाबा/ नाना/ या जो भी हम हैं! बाजार से मेरे लिए आइसक्रीम लाना।’ अगर कोई मेहमान आये तो हम पूछेंगे, ‘बोलो क्या खाओंगे।’ 
शायद ऐसा इसलिए कि हम जानते हैं कि दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है। और फिर यह कैसे भुला दे कि हमारे शरीर का सबसे ‘एक्टिव’ अंग जीभ है। ओह! खाने से बाते बनाने तक इस बेचारी ‘जीभ’ को कितनी मेहनत करनी पड़ती है। उसने दिन भी तैयारियां की, तरह-तरह के व्यंजन बनाये। लेकिन हमारी जीभ अपनी प्रयोगशाला रिपोर्ट तुरंत जारी कर देंती है- ‘खाना बेकार था। उसे आता ही कहां है बनाना।’ ज्यादा कृपा करनी हो तो यह भी कह सकते हैं, ‘उसने कभी अच्छा खाया हो तो उसे पता हो कि कैसे बनाया जाता है। हउ, गवांर कहीं की।’
इधर सफल साहित्यिक संगोष्ठी की रिपोर्ट में फलां की अध्यक्षता, फलां मुख्य अतिथि, फलां ने फलां ग़ज़ल पढ़ी। फलां ने फलां कहा तो होता ही है, आजकल एक स्थाई पंक्ति यह भी होती है- कार्यक्रम के अंत में मेजबान श्रीमती फलां के सौजन्य से शानदार भोज की व्यवस्था भी थी।’ काय्रम में ठीक-ठाक उपस्थिति के लिए आजकल निमंत्रण पत्र पर भी निमंत्रण पत्र पर यह लिखना अनिवार्य हो गया है- ‘कार्यक्रम के अंत में रात्रिभोज की व्यवस्था भी है।’
कोई तीज त्यौहार हो तो उपहार मे मिठाई, ड्राई फ्रूट, कुकीज आदि, आदि को प्राथमिकता दी जाती है। किसी दूसरे शहर से आने वाले या वहां जाने वाले को उस शहर की ‘मशहूर मिठाई लाना न भूलना’ याद करना नहीं भूलते। हमारे एक मित्र उत्तरांचल से हैं। जब भी गांव जाते, सभी परिचित पहले ही चेताते, ‘देखना जोशी, हमारे लिए बाल मिठाई जरूर लाना। आपके यहां की बाल मिठाई लाजवाब होती है। मजेदार यह है कि यहां हर तरह की, हर जगह की मिठाई मिल जाती है परंतु आपके यहां की मिठाई बनाना यहां के कारीगरों के बस का काम नहीं है। प्लीज, कम से कम एक किलो तो ले ही आना।’ इधर जोशी जी बहुत दिनों से अपने गांव नहीं गये तो एक बार मैंने पूछा, ‘क्या बात है पहले तो लगभग हर महीने, दो महीने में आप गांव जाते थे। इधर दो वर्ष हो गये, आप गांव नहीं गये?’ इतना सुनते ही जोशी जी का जोश देखते ही बनता था। बोले, ‘जब जवानी थी, शरीर में दम था, हम पच्चीस, पचास मित्रों के लिए इतने ही डिब्बे मिठाई लाद लाते थे। अब न तो शरीर में दम रहा और न ही जेब में।’
गजब तो तब हुआ जब हमारे एक बेटे की शादी के बाद बहुभोज की जिम्मेवारी मुझ घुमक्कड़ कोे दे दी गईं। ‘मीनू-सीनू सब खुद ही तय करो’ के फरमान के साथ काम शुरु हुआ। मुझे लगा कि वे यह जानना चाहते हैं कि मेरा घुमक्कड होने का दावा सत्य भी है या ‘फोटोशाप’ के कमाल से नकली तस्वीरे चमकाता हूं। अंदर की बात बता दू कि मैं घुमक्कड़ से अधिक फक्कड़ हूं। इसलिए अपना फक्कड़पन दिखाने के लिए लगभग हर राज्य के व्यंजन सजाना सुनिश्चित किया। राजस्थान की दालबाटी, जोधपुरी मावा कचैरी, बीकानेरी भुजिया, गुजराती थाली- ढोकला-खमण-पातरा, दक्षिण भारतीय डोसा-वड़ा-इडली, सांबर- चटनी, बंगाली संदेश-रसोगुल्ला, बिहारी लिट्टी, बलिया का लौंगलत्ता, आगरा का पैठा, मथुरा के पैडे, मैसूरी का चंदन पाक, कश्मीरी के पांच तरह के स्वाद सहित लगभग सौ से अधिक व्यंजन तैयार करवाये। मित्रों ने  घर बैठे भारत दर्शन का सुख और स्वाद तो लिया ही मेरे घुमक्कड़ होने पर अपनी ‘अधिकृत’ मोहर भी लगा दी। 
कार्यक्रम सफल रहा या असफल, अभी इसपर परिजनो और मित्रों की ओर से कोई अधिकृत विज्ञप्ति जारी नहीं हुई थी लेकिन इसी बीच हमारे स्थाई मित्र घसीटाराम जी एक सुबह छड़ी लिए हाजिर थे। आते ही बरस पड़े, ‘मुझे तो पहले ही संदेह था, कि तुम धोखेबाज हो। मेरे शुभचिंतक भी नहीं हो। लेकिन अब दावत से तो यह सिद्ध भी हो गया कि तुम भरोसे के काबिल नहीं हो। तुम्हारी वजह से आधे व्यंजन तो छूट ही गये। अरे भले मानुस जब इतने व्यंजन परोसने थे तो कम से कम दो दिन पहले मुझे सूचित कर देते तो मैं कुछ व्यवस्था करता।’
‘व्यवस्था? क्या व्यवस्था करते? आखिर पेट भर ही तो खाया जा सकता है।’
‘ओह! फिर वहीं बात। पेट भर के बाद एक स्टेशन मन भर भी आता है। उस दिन केवल पेटभर ही खाया लेकिन मन भर वाला अरमान अधूरा रह गया। अगर पहले बता देते तो दो दिन उपवास कर जगह बना सकता था। तुमने मुझसे धोखा किया है। तुम मेरे मित्र नहीं हो सकते।’
मैं घसीटाराम जी को भारतीय स्वाद सभा का सच्चा प्रतिनिधि मानता हूं। उन्होंने जो कहा, मेरे लिए वहीं औसत भारतीय का दर्शन है। खूब खाओं- क्योंकि चार दिन की जिंदगी है। न जाने कब जिंदगी की आखिरी शाम आ जाये इसलिए जितना हो सके मन भर खाओं। यह तो आप जानते ही है कि यह ‘कन्फर्म’ है कि जन्नत में बहतर हूरे मिलती है लेकिन छप्पन भोग मिलता है या नहीं इस बारे में  कोई किताब कुछ नहीं कहती।
इसलिए मैं अपने उस परिचित का चाय का निमंत्रण स्वीकारते हुए आज शाम वहां जा रहा हूं। अगर आपका उनसे कोई संबंध हो तो कृपया उन्हें बता दे कि चाय की आधुनिक परिभाषा क्या है। उसके साथ क्या-क्या परोसा जाता है? उससे पहले और उसके बाद का आजकल क्या शिष्टाचार है। क्या नियम है। आखिर स्वाद और स्वागत का मामला है।-- विनोद बब्बर 9868211911, 7982170421


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