ऊ दुनिया से ई दुनिया तक # E-Word, U-Duniya se E-duniya tak
ऊ दुनिया से ई दुनिया तक
ई बात तनी ध्यान से सुनी जाये कि आजकल ई की बहुत महिमा है। ई-गवर्नेंस से ई दुनिया तक। ई-ग्रिटिंग, ई-गिफ्ट और न जाने क्या-क्या है इस ई-दुनिया में। हर काम ई। जिसके बारे में हम घंटों सोचा करते कि ई कैसे करें अब वो ‘ई’ करते ही आगे बढ़ जाता है।
इधर दुर्गापूजा पर्व संपन्न हुआ तो एक बालक ने यह ई-चित्र भेजते हुए लिखा, ‘अष्टमी का प्रसाद ग्रहण करें।’ अच्छा लगा कि कन्या पूजन के अवसर पर भी वह बूढ़ा पूजन नहीं भूला। मन में विचार आया कि क्यों न मैं भी उस होनहार बालक को धन्यवाद और आशीर्वाद के साथ कुछ उपहार भेजूं।
उपहार क्या भेजा जाये, अब तो इसकी चिंता करने के लिए भी ई एडवाईजर उपलब्ध हैं लेकिन उ क्या है कि अपुन अभी इतने ई नहीं हुए। इसलिए ई बात खुद ही तय कर लेते हैं। सोचा कि सप्ताह भर ढेरों पकवान खाकर उसका मन भर चुका होगा तो क्यों न उसे कुछ फल भेजे जाये।
बात जम गई तो उसे भेजने के लिए मैं ताजे, सुंदर फलों के टोकरें का चित्र ढ़ूंढने की शुरुआत करने ही वाला था कि अचानक विचार कौंधा कि इतना दिल छोटा क्यों करते हो? सिर्फ एक अदद टोकरा ही क्यों? फलों का पूरा बाग क्यों न नहीं? इसके बाद मैंने मलीहाबादी आमों के बाग का चित्र तलाशा लेकिन तभी स्मरण हुआ कि मलीहाबादी आम के साथ बेशक कम हो लेकिन अल्फांसों आम भी होने चाहिए। आखिर स्वाद में मामले में अल्फांसों इज अल्फांसों।
खैर साहिब जैसे तैसे हमने अल्फांसों आम के बाग का जुगाड़ भी कर ही लिया। लेकिन आप जानते ही हैं कि उम्र के इस मोड़ पर कुछ ऐसा करने की इच्छा भी होती है कि कल आपकी अनुपस्थिति में आपको याद किया जाये।
मन ने प्रश्न किया- आम ही क्यों? केले, संतरे, शरीफा, अनानास, अंगूर, अनार, नाशपाती, सेव, आडू, लोकाट, पपीता, आदि आदि ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? उनकी उपेक्षा क्यों? बेशक बालक के ई प्रसाद में मात्र चार ही पूड़ी हैं लेकिन तुम्हें इतना भी कृपण नहीं होना चाहिए कि ई भी ढ़ंग न भेज सके। फिर किसी गैर को थोड़े ही देना है?
जिओ धीरू के लाल! तुम्हारे मुफ्त डाटा की कृपा से दिन भर लगकर इन सब फलों के बागों की जैसे तैसे व्यवस्था कर पाया हूं। कुछ विदेशी फल भी ले लिये हैं। लेकिन फिर वहीं समस्या।
ई क्या है कि मन है कि मानता नहीं। भेजने से पहले सोचा कि तनी आपसे पूछ लूं कि क्या इतने फल इकट्ठे भेजना ठीक रहेगा या धीरे-धीरे भेजू? मालूम नहीं उसकी मैमोरी में इतनी जगह भी है या नहीं? अनिश्चिय में हूं कि वह इतने फलों का सदुपयोग कर भी पायेगा या नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि इतने बागों की वह ठीक से देखभाल ही न कर पाये?
उससे तो पूछ नहीं सकता क्यों वह मुझसे बहुत बहुत.....! बहुत....! बहुत दूर रहता है। लगभग 20 मीटर की दूरी पर। अमेरिका, जापान, इंग्लैड में होता तो शायद साल छ महीने में मिलने आ भी सकता था लेकिन ओह 20 मीटर??? न, न, इतनी दूरी वाला साल में एक बार समय निकाले भी तो कैसे? हां, पांच साल में भी कुछ समय निकाल सके तो हमें उनका आभारी होना चाहिए। पासपोर्ट, वीजा की समस्या है। मालूम नहीं किस सड़क पर कितना जाम हो? फिर ये ई-दुनिया कोई छोटी तो हैं नहीं। न मालूम उसका समय कितना कीमती हो? मिलने-मिलाने के चक्कर में व्हाट्सअप के कुछ मैसेज फौरन शेयर करने से चूक गया तो उसे आधुनिक कौन कहेगा? इसलिए समझा करो! ई-दुनिया के ई रिश्तों को ई तरीके से ही निभाते रहो।
क्या कहा साहिब? 20 मीटर की नजदीकी कब से 20मीटर की दूरी बन गई? अरे आप तो बहुत पिछड़े हुए है कि उस जमाने को याद करते है जब हम-आप मीलों दूर वाले को रोज मिलते थे। मीलों पैदल चलकर रोज स्कूल जाते थे। आपको सिखाया जाता था- जहां अपनापन हो, आप पूर्व की ओर जा रहे हो या पश्चिम की ओर उसका घर हमेशा आपके रास्ते में आना चाहिए, तभी आप सच्चे मित्र शुभचिंतक हैं।
सच कहा साहिब, वो हमारा पिछड़ापन था। आज दुनिया ने गजब की तरक्की है इसीलिए अब ऊ दुनिया नहीं, ई-दुनिया है। यहां हमे सोशल मीडिया का खामोश स्वर तो सुनाई देता है पर रियल दुनिया में साथ वाले कमरे में कराह रहे बीमार माता-पिता का दर्द सुनाई दिखाई नहीं देता। हमने हजारों लाखों मीलों दूर अंतरिक्ष में मंगल की दूरी तो बहुत आसानी से नाप ली लेकिन जमीन पर 20 मीटर अब हमारे लिए बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत दूर हो चुके हैं।
अब शादी का निमंत्रण ई प्रापत होता है तो हमारी ओर से नवदम्पति को शुभकामनाएं भी ई। उन्होंने ई निमंत्रण संग ई-मिठाई भिजवाई तो हमने ई-पर्स से शगुन भिजवा दिया। अब तो फेसबुक पर ‘लाइव’ होने का ‘आप्शन’ भी उपलब्ध हैं इसलिए सड़क पर भीड़ लगाना जरूरी नहीं है। आओ उनकी शादी में अपनी ई-उपस्थिति दर्ज करायें।
वैसे भी आजकल हम जन्मदिन से मदर डे, फादर डे, रोज डे, चाकलेट डे, वेलनटाइन डे से होली, दीवाली, ईद, क्रिसमस, ओणम ही नहीं, अपनी हर खुशी, हर उदासी, हर मिलन, हर विछोह ई दुनिया के नागरिक होने के नाते ई तरीके से ही मनाते हैं। तो भला ई-रिश्तों पर आपको एतराज क्यों?
हम अपनी ई-दुनिया में अपने लिए अपने ढ़ंग से रिश्ते तलाशते हैं। क्षण भर में रिश्ते जोड़ते हैं तो रिश्ते तोड़ने में भी हम किसी सुस्त नहीं है। तेरे जाने पर भी मेरा दिल आबाद रहेगा क्योंकि मेरा दिल अब शीशे का नहीं, ई-स्टील का बन चुका है। रिश्तों की लाइन है। आनलाइन है। अगर आप में आनलाइन खर्च करने की क्षमता है तो रिश्ते लाइन लगाकर आपका इंतजार करते है। देशी ही नहीं, विदेशी भी। एक से बढ़कर मित्रता निवेदन आपके पास खुद चलकर आ रहे है।
यह ई-दुनिया का कमाल है कि यहां लिंग अनुपात उल्टा है। रियल दुनिया में लडकियां का अनुपात कम होगा लेकिन यहां आपको रिझाने के लिए न जाने कितने जॉन या विलियम या अजेय मैरी, कैरी या कांता बने हुए हैं।
सोचता हूं हमारी धरती तो ई हो गई लेकिन क्या उपर वाले की दुनिया भी ई हुई है या अभी भी यमराज भैंसे पर सवार होकर अपना कारोबार उसी ढ़ंग से चला रहे हैं। दिल कहता है तरक्की की हवा वहां भी जरूर पहुंची होगी। यकीन रख, एक दिन यमराज अपनी आईडी से तुझे ई-मेल भेजकर या व्हाट्सअप से मैसेज कर कहेगा - तैयार रहो। बदले में तू भी उन्हें अपने ई-प्राण भेज कर निश्चिंत हो जाना।
तेरे चाहने वाले भी ई- श्रद्धांजलि में आंसू बहा लेंगे। तेरी शान में कशीदे करेंगे। तेरे इतने सदगुण बतायेगे कि खुद धर्मराज भी चक्कर में पड़ जायेगा और तुझे जहन्नुम के बदले जन्नत अलाट कर देगा। लेकिन ध्यान रहे उस जन्नत में रियल नहीं, बाहत्तर ई हुरे ही मिलेगी। वहां अपने से पहले उनके नेट पैक का इंतजाम करना पड़ेगा। आखिर ई स्वर्ग का मामला है। जब धरती पर अपने परिवेश को स्वर्ग बनाने के लिए इतने पापड़ बेलने पड़ते हैं तो वहां हूरों के झापड़ का स्वाद चखने के लिए अपने ई बटुए को साथ ले जाना न भूले।
फिलहाल आप हमारी ई शुभकामनाएं स्वीकारें क्योंकि मैं व्यस्त हूं प्राप्त ई-प्रसाद का जायका लेने में। बहुत संभव है शीघ्र ही ई-स्वाद पर व्याख्यान के लिए किसी विश्वविद्यालय से निमंत्रण प्राप्त हो जाये या किसी टीवी चैनल को पैनल डिस्कशन में मेरी जरूरत पड़ जाये। या फिर ई मरहम पट्टी करनी पड़े। चलते चलते ई दुनिया के ई देवता को ई प्रणाम!
- विनोद बब्बर 7982170421 1vinodbabbar@gmail.com
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Reviewed by rashtra kinkar
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