अहमदाबाद से दांडी की ‘गांधी विचार यात्रा’ Gandhi Vichar Yatra By Delhi Public Library



अहमदाबाद से दांडी की ‘गांधी विचार यात्रा’
इन दिनों राष्ट्र महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती मनाई जा रही है। 2 अक्टूबर 2018 से 2019 तक वर्ष भर चलने वाले कार्यक्रमों की श्रृंखला में पिछले दिनों दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार) के सौजन्य से ‘गांधी विचार यात्रा’ का आयोजन किया गया। दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड के अध्यक्ष डा. रामशरण गौड़ के नेतृत्व में 30 साहित्यकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक दल ‘गांधी विचार यात्रा’ में भाग लेने के लिए वायु मार्ग से अहमदाबाद पहुंचा। सभी के आवास की व्यवस्था गुजरात विद्यापीठ में की गई थी। 
गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद की स्थापना गांधी जी ने 18 अक्टूबर 1920 को की थी। मैकाले द्वारा स्थापित शिक्षा नीति के दुष्प्रभावों से  भारतीयता को बचाने के लिए वैकल्पिक शिक्षा मॉडल के रूप में विख्यात इस विद्यापीठ में छात्रों के आवास की व्यवस्था भी हैं जहां अपने बर्तन, वस्त्र आदि साफ करने से अधिकांश कार्य आज भी छात्रों को स्वयं करने पड़ते है। गांधीजी आजीवन इसके कुलाधिपति रहे। गांधीजी के बाद सरदार वल्लभभाई पटेल, डा राजेन्द्र प्रसाद, मोरारजी देसाई जैसे विभूतियों ने  इस दायित्व का निर्वहन किया। 1963 से मानद विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त इस विद्यापीठ की वर्तमान प्रमुख सुप्र्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता, लेखिका सुश्री इला भट्ट है।
इस विचार यात्रा के प्रथम दिवस गुजरात विद्यापीठ के सभागार में ‘गांधी: एक पत्रकार’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। गांधी जी बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी थे। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका और वहां से लौटकर भारत में अनेक समाचार पत्रों कका संपादक किया।   उद्घाटन सत्र में गोवा की राज्यपाल डॉ. मृदुला सिन्हा, विद्यापीठ के कुलनायक डॉ. अनामिक शाह की उपस्थिति में प्रख्यात साहित्यकार, भाषाविद्,डा. रामशरण गौड़ ने गांधी जी के पत्रकार स्वरूप पर विस्तार से चर्चा की।  डा. राजेन्द्र खेमाणी (पंजीकार गुजरात विद्यापीठ), श्री प्रकाश एन. शाह (गांधीवादी चिंतक), श्री विनोद पाण्डे (पत्रकारिता विभाग प्रमुख), श्री मिहिर भोले (लेखक, पत्रकार), श्री प्रेमपाल शर्मा (पूर्व आईएएस), श्रीमती संगीता सिन्हा (संपादक पांचवा स्तम्भ), श्री विनोद बब्बर (साहित्यकार संपादक) सहित अनेक विद्वानों ने ‘गांधी की पत्रकारिता दिशा -दृष्टि’ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किये। समापन सत्र में अन्य वक्ताओं के साथ-साथ सुश्री इला भट्ट की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
उसी सायं गुजरात के महामहिम राज्यपाल डा. ओमप्रकाश कोहली के निमंत्रण पर दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी का प्रतिनिधि मंडल राजभवन पहुंचा। माननीय राज्यपाल महोदय ने सभी को गांधी साहित्य भेंट करते हुए इस साद्यशती को अधिकतम प्रभावी बनाने के लिए सभी के सुझाव आमंत्रित किये। 
हमारा अगला कार्यक्रम दांड़ी पथ पर चलना था। ज्ञातव्य है कि महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से दांडी मार्च की शुरुआत की थी। 24 दिन तक चली इस यात्रा में हजारों लोगों ने भाग लेकर नमक कानून तोड़ा। अंग्रेज सरकार ने हजारों सत्याग्रहियों को जेल में डाल दिया गया था। इस सत्याग्रह ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला दिया था। तभी तो मार्टिन लूथर किंग जूनियर और जेम्स बेवल जैसे दिग्गजों ने इस  आंदोलन को स्वयं के लिए प्रेरक बताया था।
अगली सुबह ‘दांड़ी पथ’ पर्यटन संस्थान की टीम के साथ यह दल अहमदाबाद से दांड़ी रवाना हुआ। 380 किमी के इस मार्ग पर हम उन सभी 21 स्थानों पर गये  जहां गांधी जी रूके थे। ये स्थान हैं -साबरमती आश्रम, अलाल, नवगाम, नादिआड, मतार, आनंद, बारसाद, कनकपुरा, करेली, अनखल, अमोड, समीन, देरोल, अंकलेश्वर, मंगरोल, उमरछट, भक्तम, देलाद, सूरत, वांज, नवसारी, मतवाट, दांड़ी। हर स्थान पर विशेष विश्राम केन्द्र बनाये गये हैं। हर केन्द्र का न केवल डिजाइन समान है, बल्कि कमरों में रखा सामान यथा आलमारी, कुुर्सियां, पंलग भी बिल्कुल एक जैसे हैं। हर पड़ाव पर हमारा परम्परागत गांधीवादी तरीके से स्वागत किया गया। सभी को खादी की माला पहनाई गई तो कुछ स्थानों पर फूल भी भेंट किये गये। एक रात हमने ठीक उसी वांज गांव के विश्राम केन्द्र में बिताई जहां गांधीजी भी रुके थे। यहां रात्रि सभा और विश्राम के बाद वेे कराडी होते हुए दांडी पहुंचे थे। 
दांडी अरब सागर के तट पर स्थित गुजरात के नवसारी जिले का एक गांव है। उस समय गांधी जी कुुछ दिन वोहरा सम्प्रदाय के धर्मगुरु यहां स्थित सैफी हाउस में रूके थे। इस परिसर में एक ओर केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यू डी) द्वारा संग्रहालय का निर्माण कार्य चल रहा है। तो बीच में हरे-भरे पार्क में संगमर्मर की ऊंची पट्टिका बनी हुई है, जिसपर ऐतिहासिक दांडी मार्च के बारे में जानकारी दी गई है। उससे कुछ दूरी पर काले रंग से पेंट की हुई गांधी जी की नमक उठाने की मुद्रा में मूर्ति है। यहां आने वाले पर्यटक इस स्मारक के साथ चित्र लेना नहीं भूलते। 
दांडी गांव में अब नमक निर्माण नहीं होता क्योंकि गांव वालों में समुद्र के पानी को गांव में प्रवेश से रोकने के लिए अपने गांव के चारो ओर ऊंची दीवार का निर्माण कर लिया है। भारत सरकार दांडी को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित कर रही है। वहां विशाल संग्रहालय का कार्य अंतिम चरण में है। इस संग्रहालय में 81 सत्याग्रहियों की मूर्तियां लगाई जा रही है। ऐसी व्यवस्था भी की जा रही है कि यहां आने वाले पर्यटक स्वयं अपने हाथो नमक बनाकर अपने साथ ले जा सकेंगे। हमें पास ही स्थित केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग के कार्यालय में ले जाया गया जहां नवसारी के जिलाधीश ने सभी का स्वागत किया। जलपान के बाद सभी को शीघ्र आरंभ होने वाले संग्रहालय के बारे में एक फिल्म भी दिखाई गई। 
दांडी स्मारक के बिल्कुल सामने  सामाजिक कार्यकर्ता श्री धीरू भाई पटेल ‘प्रेरणा मंदिर’ के रूप में एक विद्यालय संचालित करते हैं। इस आवासीय विद्यालय में अलग से कन्या छात्रावास भी है। विद्यालय में आयोजित एक प्रार्थना सभा में हमारे दल ने भी भाग लिया। छात्रों ने गांधी जी के प्रिय भजन के बाद ‘हम होंगे कामयाब एक दिन’ गीत प्रस्तुत किया। हमारे दलनायक डा. रामशरण गौड़ ने सभी छात्रों को उपहार और मिठाई वितरित करने के लिए विद्यालय के प्रधानाचार्य को राशि भेंट की। 
गांधी पुत्र रामदास के पुत्र कनु लाठी खींचते हुए
दांड़ी गांव के बाद हम एक बार फिर वांज स्थित दांड़ी पथ विश्राम पथ में पहुंचे जहां हमारे लिए परम्परागत गुजराती भोज की व्यवस्था थी। भोजन और कुछ विश्राम के बाद हम सूरत- अहमदाबाद राजमार्ग पर स्थित गांव भीमराड भी गये। उस गांव के सरपंच श्री बलवंत भाई ने बताया कि दांड़ी में नमक उठाये जो स्मारक बना है वह घटना वास्तव में उनके गांव की है। गांधी जी ने दांडी तक यात्रा अवश्य की थी लेकिन भीमराड गांव में ही उन्होंने गांव की महिलाओं द्वारा बनाये नमक को हाथ में लेकर कानून को तोड़ा था। इस दृष्टि में भीमराड गांव का ऐतिहासिक महत्व है। उन्होंने गांव में ही रह रही गांधी की 93 वर्षीय पौत्रवधू डॉ. शिव लक्ष्मी से भी मिलवाया। डॉ.शिव लक्ष्मी के पति श्री कनु गांधी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के तीसरे बेटे रामदास की इकलौती संतान थे। वे गांधीजी के लाडले पोते माने जाते थे। चित्रों में गांधी के साथ  लाठी खींचते नजर आने वाले कनु ही है। कनु भाई की कोई संतान नहीं थी इसलिए उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी अकेली हो गई। अब भीमराड गांव के लोग डॉ शिवालक्ष्मी (गांधी जी की पौत्रवधु) की देखभाल कर रहे है।
भीमराड गांव से चलकर भरूच, वड़ोदरा, नांदियाड होते हुए रेत रात वापस गुजरात विद्यापीठ पहुंचे जहां हमारे अर्ध रात्रि भोज की व्यवस्था थी। थकान के बाद रात्रि विश्राम से तरोताजा होकर अगली सुबह सभी फिर तैयार थे गांधी नगर स्थित बापू कुटीर के लिए। बापू कुटीर से साबरमती आश्रम औश्र कर्णावती (अहमदाबाद) के विभिन्न महत्वपूर्ण स्थलों का दौश्रा करने के बाद सभी एक बार फिर दोपहर भोज के लिए विद्यापीठ में थे। कुछ विश्राम के बाद ‘गांधी विचार यात्रा’ को अपनी स्मृति में सुरक्षित करते हुए दिल्ली लौटने की तैयारी में लग गये। उसी सायं स्वर्ण जयन्ती राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली वापस लौटना था।
गांधी जी की साद्यशती के अवसर पर आयोजित इस यात्रा में गये लेखकों, साहित्यकारों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए एक विशिष्ट अनुभव रहा जिसमें उन्होंने न केवल गांधी दर्शन को निकट से समझा बल्कि बस यात्रा के दौरान सभी ने परिचर्चा, अंत्याक्षरी, कविता प्रतियोगिता, कवि संगोष्ठी में सहभागिता की। इस विचार यात्रा में शामिल दिल्ली के पूर्व महापौर और प्रसिद्ध हिंदीसेवी  श्री महेशचन्द्र शर्मा और विधानसभा के सदस्य रह चुके श्री गौरीशंकर भारद्वाज की चुस्ती, फुर्ती और गजब की स्मरण शक्ति ने सभी को बहुत प्रभावित किया। प्रतियोगिता निर्णायक की भूमिका का निर्वहन प्रसिद्ध हिंदीसेवी श्री महेशचन्द गुप्त ने किया। श्री देवेन्द्र वशिष्ट केे सुमुधर कंठ से निकले भजनों ने आमतौर पर थका देने वाली बस यात्रा को आनंद से सराबोर कर दिया। यूं तो काव्य के विभिन्न रसों का रसास्वादन करने का अवसर मिला परंतु कालिंदी कालेज की पूर्व प्राचार्या डा. मालती की कविता ‘मौन का कोलाहल’ तथा श्री नरेश शान्डिल्य के गीत ‘राम मंदिर’ का एक-एक शब्द विचारोत्तेजक और  रोमांचित करने वाला था। 
गांवों के संकरे रास्तो से होते हुए दांड़ी तक हर क्षण हमे जानकारी देने वाले  दांडी पथ यात्रा आयोजक संस्था के श्री पटेल और सुश्री का व्यवहार अपने परिवार के सदस्यों की तरह रहा। सभी का हर तरह से ध्यान रखते हुए इस यात्रा को यादगार बनाने वाले दल नायक डॉ. रामशरण गौड़ जी जहां अपने कर्मठता में युवकों को भी मात देते नजर आये वहीं उनकी विद्वता और अनुभव का  लाभ भी सभी को प्राप्त हुआ। उन्होंने सम्पूर्ण दल को सफल, संतुष्टि और सुमंगल प्रदान करने वाले अनेक जीवन सूत्रों से जोड़ा। यह उनकी विनम्रता ही है कि यात्रा के  सहयोगियों ही नहीं सहयात्रियों का मनोबल बढ़ाने के लिए उनकी प्रशंसा करने में कहीं किसी मितव्ययता का प्रदर्शन नहीं किया। संक्षेप में कहा जाये तो यह गांधी विचार यात्रा भारतीय दर्शन से प्रत्यक्ष साक्षात्कार  का अनूठा अनुभव रही जिसके लिए दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड अभिनन्दन का पात्र है।
-विनोद बब्बर ( Contact 9868211911 rashtrakinkar@gmail.com)








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