आओ वसंत! छाओं वसंत!! देश राग गाओं वसंत!!! ---डा विनोद बब्बर

यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। शरद ऋतु अपना बोरिया बिस्तर बांधने में जुट जाता है। पेड़-पौधे पर नई कोंपलें और कलियां दिखने लगती हैं। सुवासित वातावरण में सभी को इंतजार होता है बसंत पंचमी का। यह दिन होली के आगमन का भी दिन माना जाता है। बसंत पंचमी पर पीले रंग का वस्त्र पहनना विशेष महत्व रखता है। संयोग से माँ सरस्वती के वस्त्र का रंग भी यही है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी माँ सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन माँ शारदे की पूजाकर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और माँ सरस्वती की वंदना से करते हैं। 
माना जाता है कि बसंत पंचमी के दिन ही माँ सरस्वती का जन्म हुआ था। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु की आज्ञा से प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना करने के पूर्व जब चारों ओर देखा तो उन्हें हर तरफ सुनसान ही नजर आया। इसके बाद उहोंने अपने कमंडल से चारों ओर जल छिड़का तो चार हाथों वाली एक देवी प्रकट हुई जिसके एक हाथ में पुस्तक, दूसरे में माला तथा शेष दो हाथों में वीणा थी। ब्रह्माजी के आदेश पर इस देवी ने जब वीणा बजाया तो वीणा के मधुर स्वर नाद से जीवों को वाणी प्राप्त हो गई। सात स्वरों का ज्ञान प्रदान करने के कारण इन्हें बाद में सरस्वती देवी कहा गया। ब्रह्मवैवर्त्य पुराण के अनुसार सरस्वती देवी पर प्रसन्न होकर इस दिन श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया था। इसीलिए लोग न केवल उनकी आराधना करते हैं बल्कि उत्सव भी मानते हैं। पहली बार विद्यालय जाने वाले बच्चों को भी कलम-दवात से लिखना सिखाया जाता है। बच्चे मां सरस्वती की पूजा करते हैं क्योंकि वह ज्ञान की विपुल भंडार हैं। विद्या की तो वे देवी हैं। इस अवसर पर स्कूलों और कॉलेजों में भी उत्सव मनाया जाता है। बड़े शहरों और महानगरों में तो यह दिखता नही मगर कस्बों और गाँवों में आज भी स्कूलों में बसंत पंचमी मनाई जाती है। गली मुहल्लों में माँ सरस्वती की मूर्ति पंडाल में सजा कर उनकी पूजा की जाती है। पंडित मदन मोहन मालवीय ने बसंत पंचमी के दिन ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय की नींव रखी थी। बसंत पंचमी पर कई लोग गंगा स्नान करते है और माँ गंगा की पूजा-अर्जना करते है। सूर्य भगवान की भी पूजा की जाती है। सूर्य और गंगा के अलावा पष्थ्वी की भी आराधना की जाती है। लोगों का मानना है कि जल, जीवन और अन्न देने वाले इन देव-देवियों की पूजा जरूरी है। लोग इनकी पूजा कर भगवान के प्रति कृतज्ञता जताते हैं। पूरी सृष्टि का निर्माण भी तो पृथ्वी सूर्य और जल से हुआ है इसीलिए हिंदुओं में इस दिन तीनों भगवान की पूजा करने की परम्परा है। प्रकृति की पूजा करना हर मनुष्य का कर्तव्य होना चाहिए। 
बसंत पंचमी पर एक तरफ जहाँ लोग धूम-धाम से और उत्साहपूर्वक माँ सरस्वती की पूजा करते हैं वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग इस दिन ब्राह्मणों को खाना खिलाते है तो कुछ अपने पूर्वजों को तर्पण देते हैं। इस दिन प्रेम के देवता कामदेव की भी पूजा की जाती है। पीली मिठाइयां दोस्तों और रिश्तेदारों में बांटी जाती हैं। मकर संक्रांति के बाद बसंत पंचमी  काफी महत्व रखती है। इस दिन लोग अपने कुल देवता- कुलदेवी की भी पूजा करते है और शक्ति व समृद्धि की कामना करते है। माँ सरस्वती की पूजा कर छात्र और अन्य लोग बुद्धि और विवेक की कामना करते हैं। 
कहा जाता है एक बहुत-बड़े साम्राज्य के राजा की जितनी महत्ता होती है उससे ज्यादा महत्ता ज्ञान की होती है। जहाँ राजा अपने राज्य में पूजा जाता है वहीं ज्ञान की पूजा हर जगह होती है। संत-महात्मा और धर्म का ज्ञान रखने वाले लोग मां सरस्वती की पूजा को महत्वपूर्ण समझते हैं। 
माँ सरस्वती के वाहन की भी महत्ता है। सफेद हंस सत्व-गुण (शुद्धता और सत्य) का प्रतीक है। माँ के पीले वस्त्र शांति और प्रेम का प्रतीक है। इसीलिए इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनते है ताकि उनका जीवन शांत और प्रेमपूर्ण हो। यांे तो पीला रंग बसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है। बसंत ऋतु फसल पकने का भी संकेत देता है। इस दिन जो भोजन बनता है इसमें भी रंग डालकर पीला किया जाता है। इस दिन से मौसम में बदलाव शुरू हो जाता है। यह दिन आने वाले बसंत ऋतु का आभास कराता है। पेड़ों पर नई टहनियां आने लगती हैं। खेतों में नए अंकुर फूटने लगते है। आम के पेड़ नए मंजरों से ढक जाते हैं। गेहूं और दूसरी फसल नए जीवन के आगमन का संकेत देती है। 
यही कारण है कि बसंत पंचमी पूरे देश में उल्लास के साथ मनाई जाती है। यह पर्व धार्मिक, सामाजिक और प्राकृतिक रूप से भी उतना ही महत्व रखता है। लोगों के दिल में इसके प्रति श्रद्धा दिखाई देती है। बसंत पंचमी लोगों के दिलों में नई आशा का संचार करती है।
मथुरा वृन्दावन में यह पर्व 50 दिवसीय होली महोत्सव के रूप में ही जाना जाता है क्योंकि इस दिन राधा रानी ने श्रीकृष्ण के साथ गुलाल की होली खेली थी। इसी दिन गोवर्धन में अप्सरा एवं नवल कुंड के निकट किशोरी जी ने बासंती महारास का आयोजन किया था जिसमें केवल गोपियों को ही शामिल किया था। रासलीला के दौरान अचानक किशोरी जी अंतर्ध्यान हो जाती हैं तो श्यामसुंदर किशोरी जी के वियोग में अत्यंत दुखी हो जाते है। किशोरी जी से उनका दुख जब देखा नहीं गया तो उन्होंने अन्य गोपियों के साथ वासंती महारास किया और बाद में श्यामसंदुर को भी इसमें शामिल किया था। मिलन की खुशी में दोनों ने एक दूसरे पर गुलाल डालकर होली खेली थी। तभी से ब्रज में वसंत से होली की शुरुआत हो जाती है। इस दिन के बाद से होली तक यदि मेहमान (जमाई) घर में आते हैं तो पानी में घोले गए रंग से सराबोर कर ही उनका स्वागत किया जाता है। सालियां और सलहजें उसे रंग से इतना सराबोर करती हैं जैसे होली का त्यौहार उसी दिन आ गया हो। सबसे बड़ी बात यह है कि यदि मौसम अत्याधिक ठंडा होता है तो भी मेहमान को कोई रियायत नहीं दी जाती। कुल मिलाकर इस दिन से ब्रजवासियों में होली की मस्ती दिखाई देने लगती है।
वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। इसके साथ ही यह पर्व हमंे अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं की भी याद दिलाता है। सर्वप्रथम तो यह हमें त्रेता युग से जोड़ती है। रावण द्वारा सीता के हरण के बाद श्रीराम उसकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े। इसमें जिन स्थानों पर वे गये, उनमें दंडकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। प्रेम में पगे झूठे बेरों वाली इस घटना को रामकथा के सभी गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया। 
दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहाँ शबरी माँ का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहाँ आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रद्धा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहाँ शबरी माता का मंदिर भी है।  
वसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गौरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आँखें फोड़ दीं। इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही है। गौरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर गौरी ने ऊँचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया - चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान।। 
पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंद्रबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह गौरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। (1192 ई) यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी। 
वसंत पंचमी का लाहौर निवासी वीर हकीकत से भी गहरा संबंध है। एक दिन जब मुल्ला जी किसी काम से विद्यालय छोड़कर चले गये, तो सब बच्चे खेलने लगे, पर वह पढ़ता रहा। जब अन्य बच्चों ने उसे छेड़ा, तो दुर्गा माँ की सौगंध दी। मुस्लिम बालकों ने दुर्गा माँ की हंसी उड़ाई। हकीकत ने कहा कि यदि में तुम्हारी बीबी फातिमा के बारे में कुछ कहूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा? 
बस फिर क्या था, मुल्ला जी के आते ही उन शरारती छात्रों ने शिकायत कर दी कि इसने बीबी फातिमा को गाली दी है। फिर तो बात बढ़ते हुए काजी तक जा पहुँची। वही निर्णय हुआ, जिसकी अपेक्षा थी। आदेश हो गया कि या तो हकीकत मुसलमान बन जाये, अन्यथा उसे मृत्युदंड दिया जायेगा। हकीकत ने यह स्वीकार नहीं किया। परिणामतः उसे तलवार के घाट उतारने का फरमान जारी हो गया। 
कहते हैं उसके भोले मुख को देखकर जल्लाद के हाथ से तलवार गिर गयी। हकीकत ने तलवार उसके हाथ में दी और कहा कि जब मैं बच्चा होकर अपने धर्म का पालन कर रहा हूँ, तो तुम बड़े होकर अपने धर्म से क्यों विमुख हो रहे हो? इस पर जल्लाद ने दिल मजबूत कर तलवार चला दी, पर उस वीर का शीश धरती पर नहीं गिरा। वह आकाशमार्ग से सीधा स्वर्ग चला गया। यह घटना वसंत पंचमी (23.2.1734) को ही हुई थी। पाकिस्तान यद्यपि मुस्लिम देश है, पर हकीकत के आकाशगामी शीश की याद में वहाँ वसंत पंचमी पर आज भी पतंगें उड़ाई जाती है। हकीकत लाहौर का निवासी था। अतः पतंगबाजी का सर्वाधिक जोर लाहौर में रहता है। 
वसंत पंचमी हमें सतगुरू रामसिंह कूका की भी याद दिलाती है। उनका जन्म 1816 ई. में वसंत पंचमी को ही लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था। कुछ समय वे रणजीत सिंह की सेना में रहे, फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये, पर आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण इनके प्रवचन सुनने लोग आने लगे। धीरे-धीरे इनके शिष्यों का एक अलग पंथ ही बन गया, जो कूका पंथ (नामधारी) कहलाया। 
सतगुरू रामसिंह जी गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उद्धार, अंतरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे। उन्होंने भी सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी। प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर भैणी गाँव में मेला लगता था। 1872 में मेले में आते समय उनके एक शिष्य के साथ हुई शर्मनाक  की खबर सुनकर गुरू रामसिंह के शिष्यों ने हमला बोल दिया, पर दूसरी ओर से अंग्रेज सेना आ गयी। अतः युद्ध का पासा पलट गया। इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए और 68 पकड़ लिये गये। इनमें से 50 को सत्रह जनवरी 1872 को मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया गया। शेष 18 को अगले दिन फांसी दी गयी। दो दिन बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। 14 साल तक वहाँ कठोर अत्याचार सहकर 1885 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। 
जहाँ एक ओर वसंत ऋतु हमारे मन में उल्लास का संचार करती है, वहीं दूसरी ओर यह हमें उन वीरों का भी स्मरण कराती है, जिन्होंने देश और धर्म के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी। आइये, इन सबकी स्मृति में नमन करते हुए हम भी वसंत के उत्साह में सम्मिलित हों।वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। 
आओ वसंत! छाओं वसंत!! देश राग गाओं वसंत!!! ---डा विनोद बब्बर  आओ वसंत! छाओं वसंत!! देश राग गाओं वसंत!!! ---डा विनोद बब्बर Reviewed by rashtra kinkar on 19:22 Rating: 5

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