आकर्षित करती हैं स्विट्जरलैंड की हसीन वादियाँ
स्विट्जरलैंड का नाम सारी दुनिया में जाना जाता है तो इसके मुख्य कारण हैं। पर्यटन, स्विस घड़िया और काला धन। यहाँ के बैंक खाता खोलने वाले से उसकी आय का स्रोत नहीं पूछते और समस्त जानकारी गुप्त रखते हैं लेकिन इसके लिए किसी प्रकार का ब्याज भी नहीं देते। कहा तो यह जाता है कि यहाँ जमा धन में से सर्वाधिक भारत का है इसलिए हमारे देश का बच्चा- बच्चा स्विटजरलैंड का नाम जानता है। दुनिया भर में सबसे ज्यादा पर्यटक जिनमें हनीमून मनाने वाले नवविवाहित युगल भी शामिल हैं, स्विट्जरलैंड की हसीन वादियों में आते है। यहां की पहाड़ियां पर जिनमें आप राफ्टिंग, क्लाइम्बिंग, पैराग्लाइडिंग और स्कीइंग जैसी एक्टिविटीज का मजा ले सकते हैं। अपनी खूबसूरती के कारण बॉलिवुड के निर्माताओं को आकर्षित करने वाले यह देश फ्रांस, ऑस्ट्रिया, इटली व जर्मनी के करीब है। यहाँ की सबसे खास बात यह है कि जितनी खूबसूरती इसे प्रकृति ने दी है उतना ही ध्यान यहां की सरकार भी रखती है। यहाँ के ऊंचे-ऊंचे ग्लेशियरों पर टूरिस्टों से जुड़ी हर सुख-सुविधा है।
पेरिस के बाद हमारा अगला पड़ाव था स्विटजरलैंड। ब्रिसेल से हमारी बस ने स्विटजरलैंड में प्रवेश किया।
मीलों लम्बी सुंरगों से होते हुए हम आगे बढ़ रहे थे और आल्पेस पर्वत श्रृंखला के करीब स्थित इस देश के प्राकृतिक नजारे, नदियाँ, झीलें और यहाँ की संस्कृति का अवलोकन कर रहे थे। ज्यूरिक, मॉन्ट्रो, इंटरलेकन, ल्यूसर्न, सेंट मॉरिट्ज और जरमेट, बेसल, बर्न आदि यहॉं की प्रमुख पर्यटन स्थल हैं।
स्विट्जरलैंड की राजधानी बर्न मध्ययुगीन शहर है, जिसे यूनेस्को ने सांस्कृतिक विरासत घोषित किया है। हालांकि बर्न राजधानी होते हुए भी उतना लोकप्रिय नहीं है जितना ज्यूरिख। सबसे पहले हम ज्युरिक पहुंचे। पहली ही सुबह खिड़की से बाहर झांक कर देखा तो जोरदार बारिश हो रही थी लेकिन एक घंटे बाद जब होटल रिस्पेशन में पहुंचे तो देखा, मौसम साफ था। साथ ही बारिश के पानी का कहीं नामो निशान तक नहीं। व्यापारिक केंद्र होने के कारण ज्यूरिक राजधानी सरीखा हैं। यह स्विटजरलैंड का सबसे बड़ा और सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला नगर है। ज्यूरिख की झील में स्विमिंग और सन बाथिंग से लेकर रीवर राफ्टिंग तक की सुविधा उपलब्ध है। लगभग सभी बैंकों का मुख्यालय ज्यूरिख में है। इनमें यूबीएस सबसे बड़ा है। ज्यूरिख मुंबई की तरह यहां की व्यावसायिक राजधानी है। मुख्य बाजार में तो बस बैंक ही बैंक दिखाई देते हैं। यह शहर पुराने चर्चों और आधुनिक वास्तुशिल्प डिजाइन का एक अद्भुत मिश्रण प्रदर्शित करता है.
ज्यूरिक हमारा बेस कैम्प रहा जहाँ से हम बर्फ से ढकी ग्राउबुंदेन वैली का नजारा देखने गये। सर्दियों में यहाँ बहुत ज्यादा बर्फ रहती है लेकिन जून-अगस्त में पहाड़ों से बर्फ छंट जाती है और चारों ओर रंग-बिरंगे फूल खिले हुए नजर आते हैं। इस समय भी आप केबलकार और पेनोरमिक ट्रेन के जरिए यहां की ताजगीभरी प्राकृतिक खूबसूरती के दीदार कर सकते हैं। टटलिस पर्वत पर हम केबल कार के जरिए पूरे ग्लेशियर की खूबसूरती को निहार सके। यहाँ की टिकट में तीन-तीन केबल कारों का सफर और दोपहर का भोजन भी शामिल था। दुनिया एकमात्र स्थान है जहाँ घुमती हुई केबल कार है। चौदह हजार फुट से भी अधिक ऊँचाई पर ग्लैशियर पार्क में बर्फ और सर्दी का प्रथम अनुभव था। बच्चे बर्फ की गेंद बनाकर एक दूसरे पर फेंकने लगे। कुछ बच्चे विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनाने लगे तो बड़े भी बर्फ पर झूमते-फिसलते हुए आनंदित होने लगे। मैं कुछ ऊँचाई पर चढ़ रहा था कि असंतुलित होकर फिसल पड़ा। स्वयं को रोकने के प्रयास में हथेलियों पर रेत जैसी बर्फ की रगड़ लग गई जो दो दिन तक जलन का अहसास करवाती रही। सर्दी के कारण खुले में बने रेस्टोरेंट से चाय लेकर बेच पर बैठे बर्फ का नजारा लेने लगे। कुछ ही देर में मेरे साथी भी आ गये। यहाँ हमने आइसकेव भी देखी। गुफा में चारो तरफ बर्फ जमी थी। यहाँ प्रतिदिन हजारों लोग आते हैं इसलिए बर्फीला स्वरूप बनाये रखने के लिए रेफ्रिजरेशन की व्यवस्था की गई थी। फोटो खिंचवाने के चक्कर में के.सी.खुराना ऐसे रपटे कि चोट लग गई। उस समय तो दर्द का अहसास नहीं हुआ लेकिन बाद में वे कई दिनों तक चलने- फिरने में भी असुविधा महसूस करते रहे। ठीक तीन बजे हम सभी इण्डियन रेस्टोरेंट पहुंचे जहाँ भारतीय भोजन ही नहीं गाजर का हलवा पाकर आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता का अनुभव हुआ। हाँ, यह बात अलग है कि पीली गाजर का वह हलवा गाजर को रगड़ कर नहीं, पीसकर बनाया गया था। उसमें मेवे तो थे लेकिन दूध, खोया आदि नहीं था। एक अन्य सुखद अनुभूति केबल कार यात्रा के दौरान हुई। दूसरे तल पर केबल कार बदलते हुए एक दरवाजे पर स्विस, अंग्रेजी के साथ हिन्दी में ‘कर्मचारी ही’ लिखा था। इसी प्रकार से जब हम वापस नीचे पहुँचे तो बोर्ड पर लिखा था ‘अलविदा’। हमारे कुछ साथी अभी भी वहाँ नहीं पहुँचे थे इसलिए हमें इंतजार करना पड़ा। इंतजार के इन क्षणों का सदुपयोग करते हुए मैं आसपास का अवलोकन करने लगा। देखा कि एक स्थान पर असम की चाय का बोर्ड लगा था। नजदीक गया तो उस कियोस्क में कार्यरत दो भारतीय युवकों ने ‘नमस्ते’ कहा। पूछने पर उन्होंने बताया कि वे वहाँ पिछले दस वर्षों से है और यह भी बताया कि यहाँ आने वाले पर्यटकों में सर्वाधिक संख्या भारतीयों की होती है इसीलिए यहाँ हर भारतीय वस्तु मिलती है।
वापस ज्यूरिक लौटते हुए हमारा पड़ाव था ल्यूक्रेन मेंजो इस देश का एक अन्य खूबसूरत शहर है। खूबसूरत एल्प्स पर्वत इसी शहर की पृष्ठभूमि में है। झील के किनारे बसे सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासत के लिए मशहूर इस शहर में लायन मानुमेन्ट है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह स्मारक उन 500 स्विस सैनिको की याद में बना है जो फ्रांस की क्रांति के दौरान अकारण मारे गये थे। स्मारक में सिंह की पीठ पर खंजर लगा है। आज भी पूरी दुनिया में स्विस सैनिकों को सर्वाधिक वफादार माना जाता है इसलिए इटली में स्थित वेटिकन की सुरक्षा का दायित्व स्विस सैनिकों के हाथों में है। झील के किनारे फूलों से बनी घड़ी आकर्षित करती है तो सड़क के दूसरी ओर नदी पर बना लकड़ी का पूल विशेष आकर्षण का केन्द्र है। शहर में बिजली से चलने वाली ट्राम हैं इसलिए प्रदूषण का कहीं नामो निशान तक नहीं। यहाँ के बाजार में घड़ियां के साथ-साथ चोकलेट के लिए जाने जाते हैं। विश्व प्रसिद्ध काफी नेस्केफे का मुख्यालय भी इसी नगरी में है।
दूसरे दिन हमारा कार्यक्रम 11,333 फीट की ऊँचाई पर बने यूरोप के सबसे ऊँचा रेलवे स्टेशन जंगफ्रोज जाने का था। बस से हम ग्रीन्डल वर्ल्ड पहुंचे जहाँ से कागव्हील ट्रेन लेनी थी। प्रति व्यक्ति 165 यूरो का टिकट लेकर हम प्लेटफार्म पहुँचे तो देखा कि यहां रेल की दो नहीं बल्कि तीन पटरी हैं। बीच की पटरी साइकिल की चैन जैसी जिसपर ट्रेन के नीचे लगी गरारी के दांते चलते है। यह इसलिए ताकि सीधे ऊँचाई पर जाते हुए भी ट्रेन वापस न खिसके। यहाँ से रंग बिरंगी ट्रेन बर्फ की पहाडियों को काट कर बनाई गई मीलों लम्बी सुरंगों से होकर ऊपर की ओर जाती हुई रोमांच उत्पन्न करती है। इन सुरंगों में काफी सर्दी का अहसास होता है। यह ट्रेन क्लाइस सेडेक तक जाती है, वहाँ दूसरी लाल ट्रेन तैयार थी जो अंतिम चोटी तक पहुंचती है। हमें यह जानकारी भी दी गई कि 1912 में बने इस स्टेशन का सौ वर्ष पूरे हो चुके हैं तो बेहद आश्चर्य हुआ क्योंकि अपने देश में तो जम्मू से आगे का रेल मार्ग बनाने का कार्य दशकों से चल रहा है लेकिन आज तक पूरा नहीं हो सका। हमारे देश की सबसे बढ़िया गाड़ी राजधानी अथवा शताब्दी कही जा सकती है लेकिन इस गाड़ी से उनका कोई मुकाबला नहीं थी। शानदार सीटे, हर केबिन में दोनो ओर टीवी, अति साफ-सफाई।
जंगफ्रोज पहुंचते ही आक्सीजन की कमी के कारण अनेक लोग जिनमें मैं भी शामिल था, सांस लेने में असुविधा अनुभव करने लगे। यह एक खूबसूरत स्थान है। यहाँ बर्फ का संग्रहालय (आइस पैलेस) स्थापित है, जिसका मुख्य आकर्षण इस ट्रेन के निर्माण के इतिहास को जीवान्त ढ़ंग से दर्शाया जाना है। यहाँ थे बर्फ के बने जीव-जन्तु, पक्षी, मानव और न जाने क्या-क्या। जब हम बाहर खुले में आये तो बर्फीली हवाएं चलने कारण अत्यन्त सर्दी थी इसलिए हमें फौरन ही अंदर लौटना पड़ा। अंदर बाजार, रेस्टोरंट बने थे। यहाँ बिकने वाली वस्तुएं इतनी महंगी थी कि उससे बेहतर वस्तुएं दिल्ली में उससे काफी कम कीमत पर प्राप्त की जा सकती हैं फिर भी विदेशी नाम बिकता है।
यहाँ की बर्फ पर पड़ती सूरज की तिरछी किरणों की आभा देखने का आनंद ही कुछ और है। वापसी का प्लेटफार्म बर्फ से बना था। चारो ओर बर्फ जमी थी। हम सब अत्यन्त सावधानी से पैर रखते हुए आगे बढ़ रहे थे। ठीक समय पर ट्रेन आ गई तो हम उसपर सवार हो आगे बढ़े। वापसी में भी ें क्लाइस सेडेक से ट्रेन बदलते हुए ग्रीन्डल वर्ल्ड पहुंचे तो हमारी बस तैयार थी।
ज्यूरिक लौटते हुए हम इंटरलेकन रूके। दो झीलों के बीच स्थित होने के कारण इसे इंटरलेकन कहा जाता है। यह स्थान भारतीय फिल्म निर्माताओं की पसंदीदा जगह कहा है। हमारे साथ यात्रा कर रहे एक फिल्म प्रेमी ने बताया कि दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएगें से लेकर ढाई अक्षर प्रेम के, जुदाई, हीरो जैसी फिल्मों की शूटिंग यहाँ की गई। प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर इस शहर में स्विट्जरलैंड के इतिहास और वर्तमान का सुंदर सामन्जस्य देखने को मिलता हैं। यहाँ घोड़ा गाड़ी देखी जिसे शौकीन लोग ही रखते हैं।खास बात थी हर स्थान पर रंग-बिरंगे फूल। यहाँ तक कि बिजली के हर खंभे पर भी फूलों की टोकरी टंगी थी। शेष स्विटजरलैंड से अलग यहाँ आपेक्षाकृत गर्मी थी।
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