विश्व की अनूठी नगरी-वेनिस
बचपन में शेक्सपियर का बहुचर्चित नाटक ‘दी मर्चेट ऑफ वेनिस‘ पढ़ा तो पहली बार वेनिस शहर से परिचित हुआ। परोपकारी एंटीनियों और शातिर शाइलाक के बारे में जानकारी ने उत्तरी इटली में स्थित वेनिस के इतिहास-भूगोल को जानने की जिज्ञासा बढ़ा दी। तभी से ही 117 छोटे-छोटे द्वीपों से बने शहर वेनिस जिसे वेनेज़िया भी कहा जाता है, को देखने की तमन्ना थी।
पिछले दिनों (जून 2012) इस खूबसूरत शहर में जाने का अवसर मिला तो पूरे यूरोप से विपरीत यहाँ काफी गर्मी थी। शहर में वाहनों का प्रवेश काफी हद तक नियंत्रित हैं इसलिए हमारी बस शहर के बाहर हिस्से में स्थित विशाल पाकिंग स्थल पर रोक दी गई। मोटरबोट से आने-जाने का किराया एक ही बार भुगतान करने पर हम वेनिस पहुँचे तो मोटरबोट चालक ने सायं साढ़े चार बजे वापसी का समय दिया। पुलों से जुड़े इन द्वीपों के शहर में प्रवेश करते ही पटरी वाले दुकानदारों ने घेर लिया जिनमें आधे से अधिक बंगलादेशी अथवा अफ्रीकी थे। ‘नमस्ते इण्डिया’ कह अभिवादन करते ये लोग भारत के ही किसी बाजार का हिस्सा प्रतीत हो रहे थे। यहाँ लगभग हर दुकान पर बैग टंगे थे इसलिए आकर्षक दिखने वाले इन बैंगों को काफी महंगे दामों पर खरीदने वालों की कमी नहीं थी। ये बैंग आकर्षक तो थे लेकिन टिकाऊ नहीं थे इसलिए अगले ही दिन हमारे कुछ साथी जिप खराब होेने की शिकायत करते नजर आए। वहाँ के अफ्रीकी हॉकर आक्रमक हैं। एक बार यदि उनसे बात भी करली तो वे चिपट जाते हैं और उनसे पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाता है।
कभी दुनिया की प्रमुख समुद्री व्यापार रहा वेनिस एड्रियाटिक सागर से जुड़े एक लैगून एक द्वीपसमूह है। इस द्वीप समूह में 400 पुल और 150 नहरें हैं। शहर के अलग-अलग द्वीप चार सौ पुलों से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। यही नहरें यहां की सड़कें हैं। इसके उत्तरी सिरे से शहर के भीतर जाने के लिए अब अति आधुनिक मोटरबोट जाती है। यदि आपको वेनिस की गलियां घूमनी हैं तो गंडोला हाजिर है। गंडोला यहां की पारंपरिक नाव है। ये महंगी पड़ती हैं इसलिए अब मोटरबोट का प्रचलन हो गया है। वैसे वेनिस की गलियांे में घूमते हुए पानी की अजीब प्रकार की गंध सारा मजा किरकिरा कर देती है। विशेषज्ञों का मत है कि प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिग से समुद्र के बढ़ते जलस्तर को वेनिस के अस्तित्व के लिए खतरा माना जा रहा है।
अपने समय में वेनिसवासी बहुत समृद्ध थे इसीलिए उनकी मकान बनने की कला कम आश्चर्यजनक नहीं है। वे लोग लकड़ी के लट्टों को गहरे पानी में जब जक ठोकते थे जब तक कि वह ठोस जमीन को न छू ले। वे जानते थे कि गहरे पानी में लकड़ी का क्षरण नहीं होता। यह लकड़ी ही पत्थर जैसी मजबूत नींव का काम करती थी। उस समय समुद्र के गहरे पानी में लकड़ी की नीव पर पत्थरों के बने ये शानदार भवन आज भी न केवल सही सलामत हैं, बल्कि अपनी कलात्मक भव्यता के लिए जाने जाते हैं। वेनिस आज बेशक व्यापारिक केंद्र नहीं रहा लेकिन सांस्कृतिक नगरी अवश्य है। पूरे वर्ष यहाँ अनेक विश्वस्तरीय कार्यक्रमों का आयोजित किया जाता हैं। वेनिस फिल्म फेस्टिवल तथा कार्निवल ऑफ वेनिस में भाग लेने के लिए दुनियाभर के लोग उमड़ते हैं।
सेंट मार्क बाजिलिका कैथीड्रल चर्च एक हजार वर्ष पुराना होते हुए भी असाधारण है। इसमें प्रवेश के लिए गर्मी में भी लम्बी लाइन लगी थी। वेनिस में अनेक होटल हैं क्योंकि आज इसकी पहचान एक पर्यटन नगरी के रूप में है। विश्व के लगभग हर देश के पर्यटक यहाँ मिलेंगे। आपस में जुड़े पुलों में एक स्थान पर दो इमारतों को जोड़ती एक खिड़की दिखाते हुए बताया गया कि एक तरफ शैरिफ का निवास तो दूसरी तरफ जेल है। जिसे सजा सुनाई जाती थी उसके परिजनों से इस खिड़की के माध्यम से ही उसे अंतिम बार देखते थे।
बाजार में दुकानों पर काँच की बनी कलात्मक वस्तुए बिक रही थी। गर्मी से बचने के लिए कुछ लोगों ने बांस की बनी हैट (टोपी) खरीदी जिसका दाम भी भारतीय मुद्रा में हजारों था। बहुत बड़े मैदान में एक स्थान पर कबूतरों के झुन्ड देखकर हम नजदीक गए तो कबूतर हमारे बिल्कुल पास आ गए। ये कबूतर पर्यटकों से इतने घुले मिले हैं कि ये कबूतर उनके कन्धे पर बैठ जाते हैं।
वेनिस की सफाई व्यवस्था शेष यूरोप के मुकाबले खराब ही कही जा सकती है। विशेष रूप से नागरिक सुविधाओं के लिए हमें काफी भटकना पड़ा। यूं तो WC
के निशान वाले स्टिकर जगह-जगह लगे थे लेकिन उन स्टिकरों पर बने निशान का काफी दूर तक पीछा करने के बाद एक पतली गली में वाशरूम मिला भी तो दो यूरो के भुगतान के बाद उसका उपयोग किया जा सका।
समुद्र तट पर ढ़ेरों रेस्टोरेंट हैं। रंग बिरंगी छतरी तले टेबल कुर्सी सजी हैं। चाय के नाम पर बिना दूध का कहवा मिलता है इसलिए उसे पीने कम थे। हाँ बीयर और व्हिस्की संग नॉनवेज लेने वालें बहुतायात में थे। आलू के स्टिप्स भी खूब चलते हैं। यहाँ ज्यादा देर बैठना मना है।
वेनिस की पुलिस आसमानी रंग की वर्दी में थी, जिसे देखते ही बंगलादेशी, अफ्रीकी हॉकर गलियों में घुस कर गायब हो जाते थे। पुरानी दिल्ली जैसी घुमावदार तंग लेकिन साफ- सुथरी गलियांें में भी अनेक दुकानें तथा रेस्टोरेंट हैं। ऐसी ही एक तंग गली एक बड़े मैदान में खुली जहाँ पेड़ों की छांव में बेंच लगे थे। कबूतरों संग अनेक प्रकार के पक्षी अठखेलियां कर रहे थे। कुछ ही दूरी पर पीने के पानी की व्यवस्था थी। हमने शेष समय तक अपने साथियों का वही इंतजार करना उचित समझा।
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